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जान‌िए, आखिर केदारनाथ ही क्यों आए राहुल गांधी?


रौद्रं रुद्रं ब्रह्मांडं प्रलयति, प्रलयति प्रलेयनाथ केदारनाथं। अर्थात अपने तृतीय नेत्र की अग्नि ज्वाला से ब्रह्मांड को भस्म करने में समर्थ रुद्र रुप श्री केदारनाथ जी हैं। केदारनाथ के इस विराट रूप के दर्शन से बड़े से बड़े संकट टल जाते हैं, ऐसी अकाट्य मान्यता राहुल गांधी को शायद यहां खींच लाई।

अज्ञातवास के 56 दिनों बाद दिल्ली लौटे राहुल ने पहले दौरे के लिए केदारपुरी को यूं ही नहीं चुना होगा। इसके कुछ निहितार्थ हैं, कुछ संकेत हैं। पांडवों ने अपने अज्ञातवास का ज्यादातर वक्त इस देवभूमि के दुर्गम स्थानों में ही काटा था। गोत्र हत्या का प्रायश्चित करने पांडव यहीं आए थे। यहीं से उन्हें बल मिला था।

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी जौलीग्रांट (देहरादून) एयरपोर्ट से हेलीकॉप्टर से दोपहर बाद 1.14 बजे गौरीकुंड पहुंचे। राहुल जींस और टी शर्ट में थे। साल 2013 की महाआपदा के बाद केदारघाटी पूरी तरह तबाह हो गई थी। युद्धस्तर पर चले निर्माण कार्यों से संतुष्ट दिखे राहुल बोले कि अब हालात सही हैं। देश-विदेश के लोग यहां आएं और धार्मिक महत्व को जानें।

मध्य हिमालय में 11,750 फीट की ऊंचाई पर मेरु-सुमेरु पर्वतों केबीच मंदाकिनी नदी के बाएं तट पर स्थित केदारनाथ भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

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