उत्तराखंड की प्रसिद्ध श्रीनंदा देवी राजजात यात्रा के अंतिम आबादी वाले पड़ाव वाण गांव में स्थित लाटू देवता का मंदिर आज भी देश और दुनिया के लिए रहस्य बना है। हर वर्ष बैसाख पूर्णिमा को मंदिर के कपाट खोले जाते हैं, इस दिन मंदिर के अंदर केवल पुजारी प्रवेश करते हैं वो भी पूरे चेहरे को कपड़े से ढककर। क्या है वजह जानिए तस्वीरों में...
मान्यता है कि मंदिर के अंदर शिवलिंग है जिसकी शक्ति और तेज से आंखों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है जिसके चलते पुजारी भी कपड़ा बांधकर मंदिर में प्रवेश करते हैं।
लाटू देवता को मां नंदा का भाई माना जाता है और श्रीनंदा देवी राजजात यात्रा के दौरान वाण से लेकर होमकुंड तक राजजात की अगुवाई भी लाटू करता है। 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित 350 परिवारों वाले वाण गांववासी लाटू देवता को अपना ईष्ट मानते हैं।
कुल पुरोहित रमेश कुनियाल कहते हैं कि यह मंदिर संभवत राज्य का पहला मंदिर जिसके भीतर श्रद्धालु प्रवेश नहीं करते हैं। किवदंतियों के अनुसार लाटू कनौज का गौड़ ब्राह्मण था, जो परम शिवभक्त था। शिव के दर्शनों के लिए कैलाश जाते हुए वाण गांव में उसने विश्राम किया था।
इस दौरान प्यास लगने एक महिला से उसने पानी मांग लेकिन भूलवश जाम पी लिया। कुपित होकर लाटू ने अपनी जीभ काट ली और मूर्छित हो गया।
बाद में भगवती (लाटू की धर्म बहन) की कृपा से लाटू को होश आया, जिसके बाद यहां लाटू की पूजा की जाती है।
लाटू देवता के मंदिर में बारह महीने श्रद्धालु पहुंचते हैं, जो मंदिर के बाहर से पूजा अर्चना कर ही लौटते हैं।
No comments:
Post a Comment